शहर के नंदवाना गली स्थित राधा रानी के प्राचीन मंदिर के पट अभी वर्ष में सिर्फ एक बार राधा अष्टमी पर खुलते हैं। मंदिर के सेवक का कहना है कि जब तक ठकुराइन (राधा रानी) की हवेली (मंदिर) नहीं बनती तब तक वर्ष भर मंदिर के पट नहीं खुल सकते। परंपरा के चलते इस बार भी आज रविवार को राधा अष्टमी पर सिर्फ एक दिन के लिए मंदिर के पट खुले हैं। इसके बाद एक वर्ष के लिए पट बंद हो जाएंगे। इस अवधि श्रद्धालु राधा रानी के दर्शन नहीं कर पाएंगे। मंदिर में गुप्त पूजा होती रहेगी।
बता दें कि देश में राधा रानी के प्राचीन मात्र दो ही मंदिर बताये जाते हैं जिनमें एक मंदिर वृदावन के बरसाना और दूसरा मंदिर शहर के नंदवाना में स्थित है। बरसाना में तो राधारानी की हवेली बनी हुई है, जहां ठकुराइन के श्रद्धालुओं को रोज दर्शन होते हैं, लेकिन विदिशा में पिछले 333 साल से राधा रानी एक छोटे से गर्भग्रह में विराजमान हैं। जहां साल भर गुप्त रूप से उनकी सेवा की जाती है और राधा अष्टमी के मौके पर आम श्रद्धालुओं के लिए पट खोले जाते हैं। 7 इंच की अष्टधातु की ठकुराइन की प्रतिमा के साथ ही उनकी सहेलियां भी यहां विराजमान हैं।
मंदिर के सेवक मनमोहन शर्मा का कहना है कि उनकी भी इच्छा है कि साल भर मंदिर के पट खुलना चाहिए, लेकिन जब उन्होंने राधावल्लभ मंदिर वृंदावन पीठ के प्रधान पीठाधीश्वर गोस्वामी राधेश्लाल महाराज से आग्रह किया तो उन्होंने पहले हवेली बनाने की बात कही। उनका कहना था कि यदि ठकुराइन के लिए हवेली बन जाए तो नित्य पट खोलने पर विचार किया जा सकता है। मंदिर बोर्ड के सदस्यों का कहना है कि प्रशासन को आगे आकर पहल करना चाहिए।
मंत्री के आश्वासन पर नहीं हुआ अमल
दो साल पहले केंद्रीय पर्यावरण एवं संस्कृति मंत्री प्रहलाद पटेल राधा अष्टमी के मौके पर परिवार के साथ ठकुराइन के दर्शन करने पहुंचे थे, तब उन्होंने मंदिर बनाने को लेकर मंदिर बोर्ड के सदस्यों से चर्चा की थी। उन्होंने बोर्ड और राजस्व विभाग के अधिकारियों के साथ बैठक भी की थी। तब लग रहा था कि अब ठकुराइन के लिए जल्दी ही अच्छी हवेली का निर्माण हो जाएगा, लेकिन बाद में मामला ठंड़े बस्ते में चला गया।
353 वर्ष पहले गुप्त रुप से लाये थे मूर्ति
मंदिर के सेवक मनमोहन शर्मा बताते हैं कि जो प्रतिमाएं नंदवाना स्थित मंदिर में विराजमान हैं, वह औरंगजेब के अत्याचारों के दौरान 353 वर्ष पहले सन् 1669 में गुप्तरुप से विदिशा लाई गई थीं। इन प्रतिमाओं को स्वामी परिवार लेकर आया था। इससे पहले यह प्रतिमाएं वृंदावन में जमुना जी के किनारे राधा रंगीराय मंदिर में विराजमान थीं। वर्तमान में उनकी 12वीं पीढ़ी गुप्त रुप से सेवा करती आ रही है। बताया जाता है कि शुरूआती दौर में ठकुराइन को 21 तोपों की सलामी दी जाती थी।
चांदी के पालने में झूलेंगी राधा रानी
शहर के नंदवाना गली स्थित राधा रानी के प्राचीन मंदिर के पट अभी वर्ष में सिर्फ एक बार राधा अष्टमी पर खुलते हैं। मंदिर के सेवक का कहना है कि जब तक ठकुराइन (राधा रानी) की हवेली (मंदिर) नहीं बनती तब तक वर्ष भर मंदिर के पट नहीं खुल सकते। परंपरा के चलते इस बार भी आज रविवार को राधा अष्टमी पर सिर्फ एक दिन के लिए मंदिर के पट खुले हैं। इसके बाद एक वर्ष के लिए पट बंद हो जाएंगे। इस अवधि श्रद्धालु राधा रानी के दर्शन नहीं कर पाएंगे। मंदिर में गुप्त पूजा होती रहेगी।
बता दें कि देश में राधा रानी के प्राचीन मात्र दो ही मंदिर बताये जाते हैं जिनमें एक मंदिर वृदावन के बरसाना और दूसरा मंदिर शहर के नंदवाना में स्थित है। बरसाना में तो राधारानी की हवेली बनी हुई है, जहां ठकुराइन के श्रद्धालुओं को रोज दर्शन होते हैं, लेकिन विदिशा में पिछले 333 साल से राधा रानी एक छोटे से गर्भग्रह में विराजमान हैं। जहां साल भर गुप्त रूप से उनकी सेवा की जाती है और राधा अष्टमी के मौके पर आम श्रद्धालुओं के लिए पट खोले जाते हैं। 7 इंच की अष्टधातु की ठकुराइन की प्रतिमा के साथ ही उनकी सहेलियां भी यहां विराजमान हैं।
मंदिर के सेवक मनमोहन शर्मा का कहना है कि उनकी भी इच्छा है कि साल भर मंदिर के पट खुलना चाहिए, लेकिन जब उन्होंने राधावल्लभ मंदिर वृंदावन पीठ के प्रधान पीठाधीश्वर गोस्वामी राधेश्लाल महाराज से आग्रह किया तो उन्होंने पहले हवेली बनाने की बात कही। उनका कहना था कि यदि ठकुराइन के लिए हवेली बन जाए तो नित्य पट खोलने पर विचार किया जा सकता है। मंदिर बोर्ड के सदस्यों का कहना है कि प्रशासन को आगे आकर पहल करना चाहिए।
मंत्री के आश्वासन पर नहीं हुआ अमल
दो साल पहले केंद्रीय पर्यावरण एवं संस्कृति मंत्री प्रहलाद पटेल राधा अष्टमी के मौके पर परिवार के साथ ठकुराइन के दर्शन करने पहुंचे थे, तब उन्होंने मंदिर बनाने को लेकर मंदिर बोर्ड के सदस्यों से चर्चा की थी। उन्होंने बोर्ड और राजस्व विभाग के अधिकारियों के साथ बैठक भी की थी। तब लग रहा था कि अब ठकुराइन के लिए जल्दी ही अच्छी हवेली का निर्माण हो जाएगा, लेकिन बाद में मामला ठंड़े बस्ते में चला गया।
353 वर्ष पहले गुप्त रुप से लाये थे मूर्ति
मंदिर के सेवक मनमोहन शर्मा बताते हैं कि जो प्रतिमाएं नंदवाना स्थित मंदिर में विराजमान हैं, वह औरंगजेब के अत्याचारों के दौरान 353 वर्ष पहले सन् 1669 में गुप्तरुप से विदिशा लाई गई थीं। इन प्रतिमाओं को स्वामी परिवार लेकर आया था। इससे पहले यह प्रतिमाएं वृंदावन में जमुना जी के किनारे राधा रंगीराय मंदिर में विराजमान थीं। वर्तमान में उनकी 12वीं पीढ़ी गुप्त रुप से सेवा करती आ रही है। बताया जाता है कि शुरूआती दौर में ठकुराइन को 21 तोपों की सलामी दी जाती है